आज हम आपको “ज़िन्दगी तन्हा है वीरान हैं, बस ये ही तो मेरी एक पहचान हैं।” मुहावरे से सम्बंधित नवीनतम सटीक जानकारी दे रहे है. हम बात कर रहे है अकेलापन की क्योंकि आज ये परेशानी हमारे समाज ,परिवार की समस्या बन चुकी है. इससे हमारे बच्चे भी काफ़ी प्रभावित हो रहे है बच्चे संवेदनशील होते हैं। 80 प्रतिशत बच्चे न सिर्फ पढ़ाई बल्कि परिवार की समस्या से भी ग्रस्त हैं। इसकी वजह से वे खुद को उपेक्षित सा महसूस करने लगते हैं ।
आज के समय में बड़े ही नहीं बल्कि बच्चे भी समस्याओं से अछूते नहीं हैं। पढ़ाई का बढ़ता बोझ, परिवार वालों एवं अध्यापकों की बच्चों से अत्यधिक आकांक्षा, अकेलापन, छोटी उम्र में तनाव जैसी अनेक समस्याओं से बच्चा अपने को घिरा पाता है।
दुखद स्थिति यह है कि बच्चे को यह नहीं मालूम कि वह अपनी समस्याओं को किसे कहे ?
आधुनिक युग में प्रतिद्वन्दता की मार झेलते इन मासूम प्रतिभाओं की प्रतिभा अवश्य ही संदेह के दायरे में आ गई है।आजकल कुछ परिवारों में एक या दो बच्चों की प्रणाली का चलन है। चूंकि बच्चे संवेदनशील होते हैं और पारिवारिक प्यार को नापने के उनके अपने अलग मापदंड होते है। बच्चे छोटी-मोटी डांट पर भी खुद को उपेक्षित सा महसूस करने लगते हैं।
अक्सर बच्चों के साथ एक बड़ी परेशानी यह है कि वह अपनी बात खुल कर जल्दी नहीं रख पाते । नौवीं कक्षा के छात्र सिद्धार्थ ने बताया कि 'पढ़ाई में कमजोर होने के कारण उसे न केवल घर बल्कि स्कूल में भी उपेक्षा का सामना करना पड़ता है। ऐसे . ही कुछ विचार सातवीं कक्षा की छात्रा निशा के भी है। वह कहती है यदि परीक्षा में उनके अंक कम आते हैं। तो उसके माता-पिता 'वीक प्वाइंट्स' बताने की बजाए उसे डांटने व मारने लगते हैं। ऐसे में वह बहुत हताश हो जाती है।' यह समस्या केवल सिद्धार्थ और निशा की ही नहीं है बल्कि 80 प्रतिशत बच्चों की है, जिनके अभिभावक बच्चों की कमजोरियों बताने के बजाए उन्हें डपटना शुरू कर देते है ।ऐसा नहीं है कि बच्चे सिर्फ पढ़ाई की समस्या से ग्रस्त हों बल्कि घर में भी वह परेशान हैं।
अक्सर दो या तीन बच्चों की प्रणाली में बच्चों को यह शिकायत रहती है कि उन्हें वह स्नेह नहीं मिलता जिसके दो हकदार हैं इसलिए वह खुद को अकेला महसूस करते हैं। अक्सर मंझला बच्चा खुद को सबसे ज्यादा उपेक्षित महसूस करता है पर उसी घर में उसके बड़े व छोटे भाई बहन भी कुछ ऐसा ही सोचते हैं। 12 वर्षीय अमित का कहना है कि वह अपने चारों भाई- बहनों में पढ़ाई और खेल सभी क्षेत्रों में सबसे अच्छा है फिर भी उसे वो स्नेह और देखभाल नहीं मिलती तो उसके बड़े भाई और छोटी बहन को मिलती है।
आजकल के इस व्यस्तता भरे युग में लोग अपने कामों में इस कदर उलझे हुए हैं कि उनके पास अपने बच्चों तक के लिए समय नहीं है। ऐसे में सिर्फ उन्हें सुविधाएं उपलब्ध करा कर उनसे हर क्षेत्र में कुछ अच्छा कर दिखाने की उम्मीद करना बहुत न्याय संगत नहीं प्रतीत होता। 15 वर्षीय राजा (बदला हुआ नाम) का कहना है कि उसने अकेलेपन को दूर करने के लिए तेरह सालकी उम्र में सिगरेट पीना शुरू कर दिया था क्योकि अक्सर उनके मम्मी पापा के पास उसके लिए समय नहीं रहता था।
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बच्चों की समस्याओं के बारे में मनोचिकित्सकों की राय है कि बच्चों को सिर्फ सुख-सुविधाएं उपलब्ध करा कर अभिभावक यह सोचते हैं कि वह अपने दायित्वों से मुक्त हो गए। बच्चों की अकांक्षाओं को नजर अंदाज करते हुए वह उनसे शिक्षा, खेल-कूद आदि सभी क्षेत्रों में कुछ कर गुजरने की उम्मीद रखते हैं।
ऐसे में बच्चों पर मानसिक दबाव पड़ता है और बच्चे बहुत सी मानसिक बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं। बच्चों के गलत राह पर चले जाने का भी खतरा बना रहता है और कई बार बात आत्महत्या तक भी पहुंच जाती है। बच्चों को अन्य सुविधाओं के साथ-साथ माता-पिता के स्नेह की सबसे ज्यादा जरूरत होती है।
अभिभावकों को बच्चों को समझने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि माता-पिता से अच्छा दोस्त बच्चों का कोई हो ही नहीं सकता।
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